Sochne Se Kya Hota Hai : सोचने से क्या होता है ?

सोचने (Sochne) के कारण मनुष्य खुद भी नही जानता है। परंतु वह फिर भी सोचता रहता है। मनुष्य अपने अंदर ही अंदर सोचकर अपने भावों को प्रकट करता है। वह उन बातों को सोचता रहता है, जो उसके साथ वर्तमान में हो रही हैं। सोचते सोचते वह इतना सोच में डूब जाता है की वह धीरे धीरे बडबडाने लगता है।

जिसके बारे में उसको कुछ भी नही पता होता है, कि वह सोचते में क्या कर रहा है। जिस कारण लोग उसे पागल समझने लगते हैं। धीरे धीरे करके वह उसके लिए एक रोग समान बन जाता है। जिसे वह भूलने की कोशिश करता है पर वह कर नहीं पाता है।

Sochne Se Nahi kuchh karke Milti hai Safalata
सोचने से नहीं कुछ करके मिलती है सफलता

हम सोचते क्यों है ?

मनुष्य के जीवन में सोच में आना तो एक स्वभाविक कार्य है। मनुष्य सोचता तभी है जब उसके जीवन में विपतियों का इक्कठा पहाड़ टूट पड़ता है। जब वह कुछ समझ नहीं पता है कि अब वह क्या करे जिस कारण वह सोच में आ जाता है। मनुष्य के पास सोचने (sochne) के अलावा और कोई कार्य नहीं बचता है क्योंकि वह उन परेशानियों के हल निकालने में लगा रहता है। जिस कारण वह किसी भी चीज़ से मतलब नहीं रखता है। वह एक अलग ही दुनिया में खो जाता है। वो दुनिया उसके लिए एक काल्पनिक दुनिया है, जहाँ वह अपने सवालों का हाल निकालने में लगा है|

कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिसे मनुष्य करने में अपनी पूरी मेहनत लगाता है, लेकिन किसी कारण वह कार्य सफल नहीं हो पता है तो मनुष्य का दिल टूट जाता है। उसे मायूसी होती है, और वह उसी कार्य के बारे में बार बार सोचने (sochne) लगता है। सोचने (sochne) की विपत्ति मनुष्य के जीवन में तभी आती है जब वह हार जाता है।

हमें ज्यादा क्यों नहीं सोचना चाहिए ?

यदि मनुष्य कुछ ज्यादा ही सोचता है, तो यह उसके लिए एक चिंता का विषय है। क्योंकि जब कोई चीज़ एक सीमा से बाहर हो जाती है तो वह नुकशान दायक बन जाती है। उसकी प्रकार यदि मनुष्य सोचना ज्यादा कर देता है तो वह उसके लिए नुकशान दायक बन जाता है। ज्यादा सोचने (sochne) के कारण वह पागल भी हो सकता है। और उसकी सोचने (sochne) की क्षमता भी कम हो सकती है। यदि वह किसी कार्य को करता है तो उसका मन उस कार्य में नहीं लगता है। जिस कारण उसको अपने कार्य में भी परेशानी आने लगती है।

इसलिए मनुष्य को ज्यादा नहीं सोचना चाहिए ताकि इससे उसके शरीर एवं कार्य को कोई परेशानी न हो।

ज्यादा सोचने (Sochne) के क्या दुष्परिणाम है ?

ज्यादा सोचने (sochne) के भी अधिक दुष्परिणाम है, उनमे से कुछ निम्नलिखित यह है :

  • किसी कार्य में मन न लगना
  • शरीर को हानि होना
  • दिमाग की सोचने (Sochne) की क्षमता कम होना
  • व्यवहार में बदलाव आना

ऐसे कही अधिक दुष्परिणाम है जो मनुष्य को ज्यादा सोचने (Sochne) पर आता हैं।

इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में किसी भी परेशानी को इतना नहीं सोचना चाहिए कि वह उसके लिए एक और परेशानी खड़ी कर दे। मनुष्य को सिर्फ उतना सोचना चाहिए जितनी उसको जरूरत है। यदि वह जरूरत से ज्यादा सोचेगा तो वह कुछ भी सही नहीं कर पाएगा।

FAQ

प्रश्न : मनुष्य सोचता क्यों है ?

उत्तर : मनुष्य सोचता तभी है जब कोई परेशानी उसको अंदर से बहुत पीड़ा पहुंचा रही हो|

प्रश्न : सोचने से क्या होता है ?

उत्तर : सोचने (Sochne) से मनुष्य अपने अंदर की पीड़ा को समझने की कोशिश करता है, की आखिर उसे वह क्यों परेशान कर रही है।

प्रश्न : ज्यादा सोचने के क्या दुष्परिणाम है ?

उत्तर :  ज्यादा सोचने के निम्नलिखित दुष्परिणाम है :

  • किसी कार्य में मन न लगना
  • शरीर को हानि होना
  • दिमाग की सोचने की क्षमता कम होना
  • व्यवहार में बदलाव आना

प्रश्न : मनुष्य सोचना कम कैसे करे ?

उत्तर : यदि मनुष्य अधिक सोचता है तो वह अपने आप को किसी कार्य में व्यस्थ रखे ताकि वह अपने आप को सोचने (Sochne) में न डाल सके।

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